वॉयस ऑफ ए टू जेड न्यूज :- शादी के चार साल बाद पति-पत्नी में शुरू हुआ विवाद 40 साल की मुकदमेबाजी के बाद भी खत्म नहीं हो सका। बदले की आग में झुलसकर अदालतों के चक्कर काटते-काटते युवा पति-पत्नी अब बुजुर्ग हो गए। अलग रह रही पत्नी व बेटों को पति अपनी जायदाद से फूटी कौड़ी देने को तैयार नहीं तो पत्नी भी अपने गुजर-बसर के लिए गुजारा भत्ता पाने या पति को जेल भिजवाने से पीछे नहीं हट रही। इनके बीच मुकदमेबाजी तब से चल रही है, जब पारिवारिक न्यायालय का गठन भी नहीं हुआ था।
जरीब चौकी निवासी किशन लाल और नौबस्ता के संजयगांधी नगर निवासी रामवती की 10 मार्च 1977 को शादी हुई थी। शादी के समय किशन बेरोजगार था। वर्ष 1979 में रामवती के बेटा हुआ और इसी साल किशन की शाहजहांपुर स्थित आर्डनेंस क्लाथिंग फैक्ट्री में नौकरी लग गई। पत्नी व बच्चे को लेकर किशन शाहजहांपुर में रहने लगा। वर्ष 1981 में दूसरे बेटे का जन्म हुआ। इसी साल से पति-पत्नी में विवाद शुरू हो गया और रामवती मायके आ गई। वर्ष 1983 में रामवती ने भरण-पोषण के लिए एसीएमएम पंचम की अदालत में वाद दाखिल कर दिया।
वर्ष 1986 में पारिवारिक न्यायालय के गठन के बाद मुकदमा वहां स्थानांतरित हो गया और पारिवारिक न्यायालय ने वर्ष 1987 में पत्नी व बच्चों के लिए 300 रुपये प्रतिमाह गुजारा भत्ता देने का आदेश किशन को दिया। कोर्ट ने यह धनराशि वर्ष 1993 में बढ़ाकर 600 रुपये, वर्ष 2000 में 700 रुपये और वर्ष 2007 में 2200 रुपये प्रतिमाह कर दी। उधर, वर्ष 1987 में किशन ने तलाक का मुकदमा दाखिल किया, जिसमें अगले साल एकपक्षीय आदेश पारित हो गया। मुकदमे की जानकारी होने पर रामवती ने वर्ष 2002 में आदेश रिकॉल (निरस्त) करवा दिया।
वर्ष 2002 में किशन ने मुकदमा नॉट प्रेस के आधार पर वापस कर लिया। इसी साल किशन ने दोबारा तलाक का मुकदमा दाखिल कर दिया। दोनों पक्षों को सुनने के बाद वर्ष 2005 में पारिवारिक न्यायालय ने तलाक की डिक्री पारित कर दी। वहीं एक अन्य मुकदमे में कोर्ट ने किशन को एकमुश्त पांच लाख रुपये गुजारा भत्ता देने का आदेश कर दिया। तलाक के बाद किशन ने देना बंद करने के साथ ही वसीयत तैयार कर रामवती और दोनों बेटों (सुरेंद्र और महेंद्र) को संपत्ति से बेदखल कर दिया।
इस पर रामवती ने वर्ष 2005 में अपनी रिश्तेदार गोविंदी को किशन की पत्नी बताते हुए किशन के खिलाफ दहेज उत्पीड़न व अमानत में खयानत का आरोप लगाकर एक परिवाद कोर्ट में दाखिल करा दिया, हालांकि यह खारिज हो गया। दो माह बाद ही रामवती ने फिर दहेज उत्पीड़न, मारपीट व दुष्कर्म का आरोप लगाते हुए किशन के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने के लिए कोर्ट में एक अर्जी दी। कोर्ट ने परिवाद दर्ज करने का आदेश किया तो रामवती ने नॉट प्रेस के आधार पर मुकदमा वापस ले लिया। इसके बाद रामवती ने दूसरी घटना दिखाकर फिर धोखाधड़ी, अपहरण व दुष्कर्म जैसे गंभीर आरोप लगाते हुए कोर्ट में एक अर्जी दी।
इस बार कोर्ट ने दिसंबर 2005 में किशन, उसके भाई व दो अन्य लोगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करने के आदेश कर दिए। किशन ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की तो उसे गिरफ्तारी से छूट मिल गई। चार्जशीट लगने पर किशन फिर हाईकोर्ट गया लेकिन इस बार राहत नहीं मिली और कोर्ट ने जमानत कराने का आदेश दिया। किशन ने कोर्ट में समर्पण किया तो उसे जेल जाना पड़ा। 21 दिन जेल में रहने के बाद वह जमानत पर रिहा हो सका। सेशन कोर्ट में मुकदमे की सुनवाई शुरू हुई। रामवती और उसके छोटे बेटे महेंद्र ने मुकदमे में गवाही भी दी।
पांच साल चली सुनवाई के बाद कोर्ट ने किशन को निर्दोष मानकर अक्तूबर 2010 में बरी कर दिया। बरी होने के बाद किशन ने पत्नी रामवती और बेटे महेंद्र के खिलाफ झूठी गवाही देने के आरोप में एक परिवाद दर्ज कराया। वर्ष 2012 में कोर्ट ने दोनों को तलब कर लिया और 2015 में सुनवाई शुरू हो गई। आठ साल चली सुनवाई के बाद आखिर एडीजे 13 सुरेंद्र पाल सिंह ने रामवती और महेंद्र पर लगे आरोप को गलत मानते हुए उन्हें दोषमुक्त करार दे दिया।
कैलाश के दोषमुक्ति आदेश के खिलाफ अपील भी हाईकोर्ट में लंबित है। रामवती ने न तो मुकदमा झूठा दर्ज कराया था और न ही गवाही झूठी दी। बस अभियोजन अपनी बात कोर्ट में साबित नहीं कर सका, इसलिए कैलाश बरी हुआ था। कोर्ट ने भी इसी आधार पर रामवती व महेंद्र को बरी किया है। गुजारा भत्ते का लगभग ढाई लाख रुपया बकाया न देना पड़े, इसलिए किशन ने दबाव बनाने के लिए मुकदमा दर्ज कराया था।- डीएस मिश्रा, रामवती के अधिवक्ता
21 दिन काटी जेल, तीन माह रहा निलंबित
कैलाश ने कोर्ट में तर्क रखा कि रामवती ने जिस दिन और समय की घटना बताई थी, रिकार्ड के अनुसार उस समय वह फैक्ट्री में नौकरी कर रहा था। वर्ष 1981 में घर छोड़ने से वर्ष 2005 में तलाक होने तक कोई फौजदारी का मुकदमा नहीं दर्ज कराया। तलाक और वसीयत की जानकारी के बाद रुपये ऐंठने के लिए फर्जी मुकदमे दर्ज कराए गए। झूठे मुकदमे में उसे 21 दिन जेल काटनी पड़ी। सुनवाई के दौरान पांच साल कोर्ट के चक्कर काटे। तीन माह तक वह नौकरी से निलंबित भी रहा। फैक्ट्री और समाज में छवि खराब हुई। नौकरी न करने और मुकदमेबाजी की वजह से लाखों रुपये का नुकसान भी हुआ।